Ad

Pea Farming

चारे की कमी को दूर करने के लिए लोबिया की खेती की महत्वपूर्ण जानकारी

चारे की कमी को दूर करने के लिए लोबिया की खेती की महत्वपूर्ण जानकारी

खरीफ फसलों की बुवाई का समय चल रहा है। अब ऐसे में लोबिया की खेती लघु कृषकों के लिए एक वरदान सिद्ध हो सकती है। 

भारत में लघु और सीमांत कृषकों की संख्या काफी ज्यादा है, जिनके पास काफी कम भूमि है। ऐसे कृषकों के लिए लोबिया की खेती काफी फायदेमंद साबित हो सकती है। 

लोबिया एक दलहनी फसल की श्रेणी में आने वाली एक फसल है। इसकी खेती खरीफ और जायद दोनों ही सीजन में की जा सकती है। 

इसकी खेती करने से कृषकों को दो तरह के फायदे हो सकते हैं। एक तो किसान इसे सब्जी के तोर पर प्रयोग कर सकते हैं और दूसरा इसे पशुओं के चारे में इस्तेमाल किया जा सकता है।

लोबिया से आप क्या समझते हैं ?

लोबिया एक ऐसी फली होती है, जो कि तिलहन की श्रेणी के अंतर्गत आती है। इसको बोड़ा, चौला या चौरा के नाम से भी जाना जाता है और इसका पौधा सफेद रंग का और काफी बड़ा होता है। 

लोबिया की फलियां पतली और लंबी होती हैं। साथ ही, इसका उपयोग सब्जी निर्मित करने और पशुओं के चारे के लिए किया जाता है। 

लोबिया की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु           

लोबिया की खेती करने के लिए गर्म व आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। बतादें, कि इसकी खेती करने लिए 24-27 डिग्री के बीच के तापमान की जरुरत होती है। 

अत्यधिक कम तापमान होने पर इसकी फसल पूर्णतय नष्ट हो सकती है। इसलिए लोबिया की फसल को अधिक ठंड से बचाना चाहिए। 

लोबिया की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि लोबिया की खेती हर प्रकार की मिट्टी में आसानी से की जा सकती है। मगर एक बात का खास ध्यान रखें कि इसके लिए छारीय मृदा नहीं होनी चाहिए।

लोबिया की उन्नत किस्में इस प्रकार हैं 

दरअसल, लोबिया की कई उन्नत किस्में हैं, जो कि बहुत अच्छा उत्पादन देती हैं। जैसे - सी- 152, पूसा फाल्गुनी, अम्बा (वी- 16), स्वर्णा (वी- 38), जी सी- 3, पूसा सम्पदा (वी- 585) और श्रेष्ठा (वी- 37) आदि प्रमुख किस्में हैं। 

लोबिया की बुवाई के लिए उपयुक्त समय

अगर हम लोबिया की बुवाई के विषय में बात करें, तो बरसात के मौसम में जून महीने के अंत तक इसकी बुवाई की जाती है। वहीं, इसकी फरवरी से लेकर मार्च माह तक बुवाई की जाती है।

लोबिया की बुवाई करने के लिए बीज की मात्रा

लोबिया की बुवाई करते समय यह ध्यान रखना विशेष जरूरी है, कि उसकी मात्रा ज्यादा न हो। इसकी बुवाई के लिए सामान्यत: 12-20 कि.ग्रा. बीज/हेक्टेयर की दर से पर्याप्त माना जाता है। 

इसकी बेल वाली किस्मों के लिए बीज की मात्रा थोड़ी कम लगती है। साथ ही, मौसम के हिसाब से बीज की मात्रा का निर्धारण किया जाना चाहिए।

लोबिया की बुवाई करने का उत्तम तरीका क्या है ?

लोबिया की बुवाई करने के दौरान इस बात का ध्यान रखना विशेष आवश्यक है, कि इसके बीज के बीच समुचित दूरी होनी जरूरी है। जिससे कि जब इसका पौधा उगे, तो वह ठीक ढ़ंग से विकास कर सके। 

ये भी पढ़ें: लोबिया की खेती: किसानों के साथ साथ दुधारू पशुओं के लिए भी वरदान

दरअसल, लोबिया की बुवाई करते वक्त उसकी किस्म के अनुरूप फासला रखा जाता है। जैसे- झाड़ीदार किस्मों के बीज के लिए एक कतार से दूसरी कतार की दूरी 45-60 सेमी होनी चाहिए। 

बीज से बीज का फासला 10 सेमी तक होना चाहिए। वहीं, इसकी बेलदार किस्मों के लिए लाइन से लाइन का फासला 80-90 सेमी रखना सही होता है। 

लोबिया में खाद की मात्रा की जानकारी  

लोबिया की खेती करने के लिए खाद की बड़ी महत्ता होती है। ऐसे ही लोबिया की खेती करने के लिए खाद अत्यंत आवश्यक है। लोबिया की फसल उगने से कुछ इस तरह से खाद डालनी चाहिए। 

एक महीने पहले खेत में 20-25 टनगोबर या कम्पोस्ट डालें, 20 किग्रा नाइट्रोजन, फास्फोरस 60 कि.ग्रा. तथा पोटाश 50 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में जुलाई के अंत में ही डाल दें। साथ ही, नाइट्रोजन की 20 कि.ग्रा. की मात्रा फसल में फूल आने के दौरान देनी चाहिए।

लोबिया की खेती में सिंचाई प्रबंधन 

लोबिया की फसल को खरीफ के सीजन में सिंचाई की ज्यादा आवश्यकता नहीं पड़ती है। इसलिए खरीफ के सीजन में उतना ही पानी देना चाहिए, जिससे कि मृदा में नमी बरकरार बनी रहे। 

वहीं, गर्मी की फसल की बात करें तो सामान्यतः किसी भी फसल में पानी की अधिक आवश्यकता होती है। यदि लोबिया की बात करें, तो इसमें 5 से 6 पानी की आवश्यकता पड़ती है। 

अरहर दाल की खेती कैसे करे

अरहर दाल की खेती कैसे करे

अरहर की दाल घर से लेकर होटल, ढ़ाबों तक हर जगह पसंदी की जाती है। इसकी खपत भी खूब होती है। अच्छे और गुणवत्ता युक्त उत्पादन के लिए अरहर की उन्नत खेती के तौर तरीके जानाना आवश्यक है। 

कुछ किसान हाइब्रिड अरहर की खेती भी कर रहे हैं। यूं तो किसान इसकी खेती करते आ रहे हैं, लेकिन अब कम समय में पकने वाली और अरहर के बाद दूसरी फसलें ले सकने की समय सीमा वाली किस्में भी आ गई हैं। इनकी जानकारी होना किसानों के लिए आवश्यक है। 

अरहर की खेती कब की जाती है

अगर हम बात करें अरहर कब बोई जाती है तो अरहर की कम समय में पकने वाली किस्मों के विकसित होने से अरहर के बाद रबी सीजन की कई फसलें लेना आसान हुआ है। 

इससे किसनों की माली हालत सुधारने की दिशा में सुधार हुआ है। अरहर की खेती के बाद किसान बाजरा, ज्वार, मक्का, तिल, सोयाबीन, उडद, मूंग आदि की फसल ले सकते हैं। 

इसके अलावा अरहर की खेती के बाद फसल चक्र की बात करें तो अरहर के बाद गेहूं, अरहर—गेहूं—मूंग, अरहर—गन्ना, ग्रीष्म मूंग— अरहर एवं गेहूं, अति अगेती अरहर—आलू एवं उडद के अलावा अरहर—उडद—मसूर या तारामीरा जैसी फसलों का चक्र बनाकर साल भर पैसे का चक्र बनाया जा सकता है। 

दालों में अरहर की दाल सबको भाती है और इसकी कीमत भी ठीक ठाक मिलती है। इसकी बिजाई जून—जुलाई में की जाती है।

अरहर की खेती के लिए भूमि का चुनाव

अरहर का पौधा विभिन्न प्रकार की भूमि में लगाया जा सकता है। अरहर की खेती के लिए हल्की रेतीली दोमट या मध्यम भूमि जिसमें प्रचुर मात्रा में स्फुर तथा जिसका पी.एच. मान 7-8 के बीच में हो व समुचित जल निकासी वाली हो इसके लिये सर्वोत्तम होती है।

बीज की मात्रा एवं बीजोपचार

उन्नत किस्मों का बीज 18-20 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से बुआई करें। मृदा जनित रोगों से बचाव के लिए बीज को फफूंदनाशक दवा थाइरम या कार्बेन्डाजिम को 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज में मिलाकर उपचारित करें। 

तत्पश्चात, बीज को राइजोबियम कल्चर 5 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित करें। 50 ग्राम गुड़ या चीनी को 1-2 लीटर पानी में घोलकर उबाल लें। घोल के ठंडा होने पर उसमें 200 ग्रा. राइजोबियम कल्चर मिला दें। 

इस कल्चर में 10 किलोग्राम बीज डाल कर अच्छे से मिला लें ताकि प्रत्येक बीज पर कल्चर का लेप चिपक जाये। बीज को कल्चर से उपचरित करने के बाद छाया में सुखाकर शीघ्र बुवाई करें। उपचारित बीज को कभी भी धूप में न सुखायें।

अरहर की उच्च उपज किस्म

अगर आपके मन में प्रश्न है, कि अरहर की दाल कैसी होती है, तो आपको बतादें कि अरहर की दाल अत्यंत फायदेमंद होती है। भारत वर्ष के उत्तरी क्षेत्रों के लिए विभिन्न किस्में विकसित हो चुकी हैं। 

क्षेत्रीय परिस्थितियों के अनुरूप प्रजाति का चयन करना चाहिए। इन सभी किस्मों की औसत उजप 20 से 25 कुंतल प्रति हैक्टेयर तक मिलती है। 

ये भी पढ़ें: अरहर की खेती से किसानों को ये किस्में दिलाएंगी शानदार मुनाफा

उत्तर पश्चिमी क्षेत्र विशेषकर पंजाब के लिए पीपीएच—4 किस्म की हाइब्रिड प्रजाति अच्छी हे। उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा राज्य के लिए पूसा 992 एसडी सभी क्षेत्रों के लिए, पंजाब और उत्तरी राजस्थान हेतु पूसा 99 संपूर्ण क्षेत्र, पूसा 2001 एवं 2002 संपूर्ण क्षेत्र, आजाद एलडी—यूपी—बिहार, विरसा एमडी किम बिहार के पहाड़ी इलाके, डब्ल्यूआर किस्म यूपी बिहार, पूसा—9 संपूूर्ण क्षेत्र, नरेन्द्र अरहर  पूर्वी उत्तर प्रदेश, श्वेता—पश्चिम बंगाल, जागृृति संपूर्ण क्षेत्र, आईसीपीएल—मैदानी भाग, आईसीपीएच हाइब्रिड संपूूर्ण क्षेत्र में बुवाई हेतु उपयुक्त हैं। कई किस्में रोग रोधी भी हैं। अगेती किस्मों में जून में बोने को पारस, यूपीएस 120, पूसा 992 एवं टी—21 जुलाई में बोने के लिए बहार, अमर, नरेन्द्र, आजाद, पूसा 9, मालवीय विकास, मालवीय चमत्कार, नरेन्द्र अरहर 2 जैसी अनेक किस्में हैं। नई अगेती प्रजाति में प्रजाति पंत अरहर-421 को पश्चिमी यूपी, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड के मैदानी हिस्से में उगाया जाएगा। 

अरहर की बुआई का समय एवं विधि

शीघ्र पकने वाली किस्मों की बुआई सिंचित क्षेत्रों में जून के प्रथम पखवाड़े तथा मध्यम देर से पकने वाली प्रजातियों की बुआई जून के द्वितीय पखवाड़े में करें। बुआई सीडड्रिल या हल के पीछे चोंगा बांधकर पंक्तियों में करें। 

ऐसे खेत जिनमे जल भराव की समस्या हो उनमे बुवाई के लिए कूड़ एवं पंक्ति विधि उपयुक्त होती है। शीघ्र पकने वाली जातियों के लिये पंक्तियों के बीच की दूरी 30-45 सेण्टीमीटर तथा पौधे से पौधे के बीच की दूरी 10-15 सेण्टीमीटर, मध्यम तथा देर से पकने वाली जातियों के लिये 60-75 सेण्टीमीटर कतार से कतार तथा पौधे से पौधे की दूरी 20-25 सेण्टीमीटर रखते हैं। 

अरहर के लिए उर्वरक

अरहर की फसल को रोगों से बचाव के लिए एवं पैदावार बढ़ाने के लिए खाद और उर्वरक का प्रयोग हमेशा मिट्टी की जांच के बाद ही करें। 

मृदा परीक्षण के आधार पर समस्त उर्वरक अंतिम जुताई के समय हल के पीछे कूड़ में बीजों से 2 सेण्टीमीटर की गहराई व 5 सेण्टीमीटर साइड में देना सर्वोत्तम रहता है। 

प्रति हेक्टर 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 केजी फास्फोरस, 20 केजी पोटाश व 20 केजी गंधक की आवश्यकता होती है। जिन क्षेत्रों में जस्ता की कमी हो वहां पर 25 केजी जिंक सल्फेट प्रयोग करें। 

नाइट्रोजन एवं फस्फोरस की कमी समस्त भूमियों में होती है। किन्तु पोटाश एवं जिंक का प्रयोग मृदा परिक्षण उपरान्त खेत में कमी होने पर ही करें। 

नत्रजन एवं फासफोरस की संयुक्त रूप से पूर्ति हेतु 100 केजी डाई अमोनियम फास्फेट एवं गंधक की पूर्ति हेतु 100 केजी जिप्सम प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करने पर अधिक उपज प्राप्त होती है।

सिंचाई एवं जल निकास

जहां सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो वहां पर बारिश न होने पर एक हल्की सिंचाई फूल आने पर व दूसरी फलियां बनने की अवस्था पर करने से पैदावार में बढ़ोतरी होती है। 

अधिक अरहर उत्पादन के लिए खेत में उचित जल निकास का होना प्रथम शर्त है अत: निचले एवं अधो जल निकास की समस्या वाले क्षेत्रों में मेड़ों पर बुवाई करना उत्तम रहता है। 

अरहर में खरपतवार नियंत्रण

प्रथम 60 दिनों में खेत में खरपतवार की मौजूदगी अत्यन्त नुकसानदायक होती है। इसकी खुरपी से दो बार निराई करें। प्रथम बुवाई के 25-30 दिन बाद एवं द्वितीय 45-60 दिन बाद खरपतवारों के प्रभावी नियंत्रण के साथ मृदा वायु-संचार होता है। 

ये भी पढ़ें: किसान भाई खरीफ सीजन में इस तरह करें मूंग की खेती

पेन्डीमिथालिन 1.25 कि.ग्रा. सकिय तत्व/हे. की दर से बुवाई के बाद 3 दिनों के अंदर प्रयोग करने से खरपतवार खेत में नहीं उगता है। 

भण्डारण

भण्डारण हेतु नमी का प्रतिशत 10-11 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। भण्डारण में कीटों से सुरक्षा हेतु एल्यूमीनियम फास्फाइड की 2 गोली प्रति टन प्रयोग करें।

अरहर की खेती से किसानों को ये किस्में दिलाएंगी शानदार मुनाफा

अरहर की खेती से किसानों को ये किस्में दिलाएंगी शानदार मुनाफा

अरहर की खेती सदैव कृषकों के लिए फायदे का सौदा साबित हुई है। हालांकि, बाजार के उतार-चढ़ाव में अरहर का भाव कम-अधिक होता रहता है। 

परंतु, अरहर की खेती करने वाले कृषकों के समक्ष एक चुनौती यह आती है, कि यह फसल काफी लंबे समय में पककर तैयार होती है। किसान दूसरी फसलों की बुवाई नहीं कर पाता है। 

परंतु, वैज्ञानिकों ने अरहर की कुछ ऐसी भी किस्में तैयार की हैं, जो न सिर्फ कम समय में पककर तैयार होती हैं। साथ ही, उपज भी काफी अच्छी देती हैं। 

इसके अतिरिक्त किसानों को अरहर की खेती में कुछ विशेष सावधानियों की आवश्यकता पड़ती है। बतादें, कि कृषकों को अरहर की रोपाई से पहले उसका बीजोपचार करना पड़ता है। 

साथ ही, अरहर की बुवाई जून के माह में की जाती है। चलिए जानते हैं, कम समयावधि में तैयार होने वाली किस्मों की खूबियां व बीचोपचार के बारे में।

किसान भाई इन तीन किस्मों का उत्पादन कर अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं ?

अरहर की पूसा 992 किस्म

भूरे रंग, मोटा, गोल और चमकदार दाने वाली इस किस्म को वर्ष 2005 में विकसित किया गया था। ये किस्म अन्य किस्मों के मुकाबले कम दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसको पकने में तकरीबन 140 से 145 दिन का समय लगता है।

दरअसल, यह किस्म प्रति एकड़ भूमि द्वारा 7 क्विंटल उत्पादन प्रदान कर सकती है। जानकारी के लिए बतादें, कि इस किस्म की खेती सर्वाधिक पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली और राजस्थान राज्य में की जाती है। 

अरहर की पूसा 16 किस्म 

पूसा 16 जल्दी तैयार होने वाली बेहतरीन प्रजाति है। अरहर की इस किस्म की समयावधि 120 दिन की होती है। इस फसल में छोटे आकार का पौधा 95 सेमी से 120 सेमी लंबा होता है, इस किस्म का औसत उत्पादन 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होता है। 

अरहर की आईपीए 203 किस्म  

अरहर की आईपीए 203 किस्म की विशेषता यह है, कि इस किस्म में बीमारियों का आक्रमण नहीं होता है। साथ ही, इस किस्म की बुवाई करके फसल को बहुत सारे रोगों से संरक्षित किया जा सकता है। 

साथ ही, इससे बेहतरीन उपज भी हांसिल कर सकते हैं। इसकी औसत उपज 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की होती है।

इस किस्म की समयावधि 150 दिन की होती है। साथ ही, अन्य किस्मों को तैयार होने में लगभग 220 से 240 दिन लगते हैं।

कृषक इस प्रकार बीज उपचार करें 

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि किसी भी फसल की खेती से पहले बीज उपचार अत्यंत आवश्यक है। बीज उपचार करने से रोगिक प्रभाव काफी कम पड़ते हैं। 

ये भी पढ़ें: अरहर की फसल को रोगों से बचाएं

इसके लिए कार्बेंडाजिम नामक दवा को दो ग्राम प्रति किलो की दर से मिला लें। इसमें पानी मिलाकर बीज को किसी छाया वाली जगह पर चार घंटे के लिए रख दें। इसके बाद इसकी बुवाई करें। ऐसा करने से बीज पर किसी प्रकार का रोग आक्रामण नहीं करता है। 

कृषक इस विधि से करें अरहर की खेती 

सामान्यतः किसान अरहर की खेती छींटा विधि के माध्यम से करते हैं, जिससे कहीं अधिक तो कहीं कम बीज जाते हैं। इससे कहीं घनी तो कहीं खाली फसल तैयार होती है। 

इससे फसलीय उपज में काफी कमी आती है, क्योंकि घना हो जाने से पौधों को समुचित धूप, पानी और खाद नहीं मिल पाता है। इसके लिए किसान को 20 सेंटीमीटर के फासले पर बीज लगाने चाहिए। इससे बीज दर भी काफी कम लगती है।

लोबिया की इन पांच किस्मों से किसानों को मिलेगा बेहतरीन मुनाफा

लोबिया की इन पांच किस्मों से किसानों को मिलेगा बेहतरीन मुनाफा

लोबिया की उन्नत किस्मों को खेत में उगाने से किसान 50 दिनों के अंतर्गत तकरीबन 100 से 125 क्विंटल तक शानदार उत्पादन हांसिल कर सकते हैं। बाजार में ऐसी विभिन्न तरह की लोबिया की किस्में उपलब्ध हैं। 

परंतु, बेहतरीन उत्पादन अर्जित करने के लिए पंत लोबिया, लोबिया 263, अर्का गरिमा, पूसा बारसाती एवं पूसा ऋतुराज किस्मों का चुनाव करें। 

किसान भाई लोबिया की फसल से शानदार मुनाफा उठाने के लिए किसान को अपने खेत में शानदार और उम्दा किस्मों को लगाना चाहिए। 

लोबिया एक दलहनी फसल की श्रेणी के अंतर्गत आने वाली फसल है, जिसकी खेती भारत के छोटे और सीमांत किसानों के द्वारा सबसे ज्यादा की जाती है। क्योंकि यह फसल कम भूमि में भी अच्छी उत्पादन देती है। 

लोबिया की खेती खरीफ एवं जायद दोनों ही सीजन में की जाती है। परंतु, इसकी उन्नत किस्मों से किसान हर एक सीजन में लोबिया की बढ़िया पैदावार अर्जित कर सकते हैं। 

इसी क्रम में आज हम आपके लिए लोबिया की पांच उन्नत किस्मों की जानकारी लेकर आए हैं, जिसे लगाने के पश्चात आप प्रति एकड़ 100 से 125 क्विंटल उपज हांसिल कर सकते हैं। साथ ही यह किस्में 50 दिनों के सामान्यतः पककर पूरी तरह से तैयार हो जाती है।

लोबिया की पांच शानदार उन्नत किस्में

पंत लोबिया किस्म

लोबिया की इस प्रजाति के पौधे तकरीबन डेढ़ फीट तक ऊंचे होते हैं। पंत लोबिया को खेत में बोने के 60 से 65 दिन पककर तैयार होने में लग जाते हैं। लोबिया की यह किस्म प्रति हेक्टेयर 15 से 20 क्विंटल तक उपज प्रदान करती है।

ये भी पढ़ें: लोबिया की खेती से किसानों को होगा दोहरा लाभ

लोबिया 263 किस्म

लोबिया की यह किस्म अगेती फसल है, जो खेत में 40 से 45 दिनों के समयांतराल में पक जाती है। लोबिया 263 किस्म से किसान प्रति हेक्टेयर लगभग 125 क्विटंल तक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।

अर्का गरिमा किस्म

लोबिया की अर्का गरिमा किस्म बारिश व बसंत ऋतु के दौरान शानदार उत्पादन देती है। अर्का गरिमा किस्म 40-45 दिनों के समयांतराल में पक जाती है। बतादें, कि प्रति हेक्टेयर तकरीबन 80 क्विंटल तक पैदावार देती है।

ये भी पढ़ें: लोबिया की खेती: किसानों के साथ साथ दुधारू पशुओं के लिए भी वरदान

पूसा बरसाती किस्म

लोबिया की इस किस्म के नाम से ही ज्ञात हो जाता है, कि किसान इसे अपने खेत में बारिश के समय लगाएं, तो उन्हें बेहतरीन पैदावार मिलेगी। लोबिया की पूसा बरसाती किस्म की फलियां हल्के हरे रंग की होती है। 

यह किस्म लगभग-लगभग 26 से 28 सेमी लंबी होती है। साथ ही, यह खेत में 45-50 दिन के भीतर पक जाती है। यह किस्म प्रति हेक्टेयर 85-100 क्विंटल तक उत्पादन देती है।

पूसा ऋतुराज किस्म

इस किस्म की लोबिया खाने में बेहद ही ज्यादा अच्छी मानी जाती है। इसकी किस्म की फलियां हरे रंग की होती हैं। साथ ही, यह प्रति हेक्टेयर लगभग 75 से 80 क्विंटल तक उपज प्राप्त होती है।

कृषि वैज्ञानिकों ने मटर की 5 उन्नत किस्मों को विकसित किया है

कृषि वैज्ञानिकों ने मटर की 5 उन्नत किस्मों को विकसित किया है

कृषक भाइयों रबी सीजन आने वाला है। इस बार रबी सीजन में आप मटर की उन्नत किस्म से काफी अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। बेहतरीन किस्मों के लिए भारत के कृषि वैज्ञानिक नवीन-नवीन किस्मों को तैयार करते रहते हैं। इसी कड़ी में वाराणसी के काशी नंदिनी भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान द्वारा मटर की कुछ बेहतरीन किस्मों को विकसित किया है। भारत में ऐसी बहुत तरह की फसलें हैं, जो किसानों को कम खर्चे व कम वक्त में अच्छा उत्पादन देती हैं। इन समस्त फसलों को किसान भाई अपने खेत में अपनाकर महज कुछ ही माह में मोटा मुनाफा कमा सकते हैं।

सब्जियों की खेती से भी किसान अच्छा-खासा मुनाफा कमा सकते हैं

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि ऐसी फसलों में
सब्जियों की फसल भी शम्मिलित होती है, जो किसान को हजारों-लाखों का फायदा प्राप्त करवा सकती है। यदि देखा जाए तो किसान अपने खेत में खरीफ एवं रबी सीजन के मध्य में अकेले मटर की बुवाई से ही 50 से 60 दिनों में काफी मोटी पैदावार अर्जित कर सकते हैं। जैसा कि हम सब जानते हैं, कि देश-विदेश के बाजार में मटर की हमेशा मांग बनी ही रहती है। बतादें, कि मटर की इतनी ज्यादा मांग को देखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के कृषि वैज्ञानिकों ने मटर की बहुत सारी शानदार किस्मों को इजात किया है। जो कि किसान को काफी शानदार उत्पादन के साथ-साथ बाजार में भी बेहतरीन मुनाफा दिलाएगी।

ये भी पढ़ें:
मटर की खेती से संबंधित अहम पहलुओं की विस्तृत जानकारी

काशी अगेती

इस किस्म की मटर का औसत वजन 9-10 ग्राम होता है। बतादें, कि इसके बीज सेवन में बेहद ही ज्यादा मीठे होते हैं। इसकी फलियों की कटाई बुवाई के 55-60 दिन उपरांत किसान कर सकते है। फिर किसानों को इससे औसत पैदावार 45-40 प्रति एकड़ तक आसानी से मिलता है।

काशी मुक्ति

मटर की यह शानदार व उन्नत किस्म चूर्ण आसिता रोग रोधी है। यह मटर बेहद ही ज्यादा मीठी होती है। यह किस्म अन्य समस्त किस्मों की तुलना में देर से पककर किसानों को काफी अच्छा-खासा उत्पादन देती है। यदि देखा जाए तो काशी मुक्ति किस्म की प्रत्येक फलियों में 8-9 दाने होते हैं। इससे कृषक भाइयों को 50 कुंतल तक बेहतरीन पैदावार मिलती है।

ये भी पढ़ें:
जानिए मटर की बुआई और देखभाल कैसे करें

अर्केल मटर

यह एक विदेशी प्रजाति है, जिसकी प्रत्येक फलियों से किसानों को 40-50 कुंतल प्रति एकड़ पैदावार प्राप्त होती है। इसकी प्रत्येक फली में बीजों की तादात 6-8 तक पाई जाती है।

काशी नन्दनी

मटर की इस किस्म को वाराणसी के काशी नंदिनी भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान ने इजात किया है। इस मटर के पौधे आपको 45-50 सेमी तक लंबे नजर आऐंगे। साथ ही, इसमें पहले फलियों की उपज बुवाई के करीब 60-65 दिनों के उपरांत आपको फल मिलने लगेगा। बतादें, कि इसकी किस्म की हरी फलियों की औसत पैदावार 30-32 क्विंटल प्रति एकड़ तक अर्जित होती है। साथ ही, बीज उत्पादन से 5-6 क्विंटल प्रति एकड़ तक अर्जित होती है। ऐसे में यदि देखा जाए तो मटर की यह किस्म जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल, पंजाब, उत्तर प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के कृषकों के लिए बेहद शानदार है।

ये भी पढ़ें:
तितली मटर (अपराजिता) के फूलों में छुपे सेहत के राज, ब्लू टी बनाने में मददगार, कमाई के अवसर अपार

काशी उदय

इस किस्म के पौधे संपूर्ण तरीके से हरे रंग के होते हैं। साथ ही, इसमें छोटी-छोटी गांठें और प्रति पौधे में 8-10 फलियां मौजूद होती हैं, जिसकी प्रत्येक फली में बीजों की तादात 8 से 9 होती है। इस किस्म से प्रति एकड़ कृषक 35-40 क्विंटल हरी फलियां अर्जित कर सकते हैं। किसान इस किस्म से एक नहीं बल्कि दो से तीन बार तक सुगमता से तुड़ाई कर सकते हैं।
लोबिया की खेती से किसानों को होगा दोहरा लाभ

लोबिया की खेती से किसानों को होगा दोहरा लाभ

लोबिया की खेती से किसान काफी लाभ कमा सकते हैं। दलहन फसल की श्रेणी के लोबिया की खेती (Lobia Farming) से दो तरीके से लाभ होता है। लोबिया की फलियों की सब्जी होती है। इसका प्रयोग पशुचारा और हरी खाद के रूप में किया जाता हैं। इसे बोड़ा, चौला या चौरा, करामणि, काऊपीस - (cowpea) भी कहा जाता है। यह सफेद रंग का और बड़ा पौधा होता है। इसकी फलियां पतली, लंबी होती हैं और इसके फल एक हाथ लंबे और तीन अंगुल तक चौड़े और कोमल होते है।

लोबिया की खेती के लिए जलवायु:

गर्म व आर्द्र जलवायु में 24-27 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान में लोबिया की खेती होती है।

ये भी पढ़ें: गर्मियों की हरी सब्जियां आसानी से किचन गार्डन मे उगाएं : करेला, भिंडी, घीया, तोरी, टिंडा, लोबिया, ककड़ी

लोबिया की खेती कैसी जमीन में करनी चाहिये ?

  • लोबिया की खेती वैसे जमीन में करनी चाहिये, जिसमें जल निकास की उचित व्यवस्था हो।
  • क्षारीय भूमि इसकी खेती के लिये के उपयुक्त नहीं होता है।
  • इसके मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 6.5 के बीच होना चाहिए।

लोबिया की खेती कब करनी चाहिये ?

लोबिया की बुआई बरसात के मौसम में जून के अंत से लेकर जुलाई माह तक और गर्मी के मौसम में फरवरी-मार्च में की जाती है।

लोबिया की उन्नत किस्में :

लोबिया की कई उन्नत किस्में हैं। आवश्यकता के अनुसार किस्म का चयन करना चाहिये।

  • दाने के लिए लोबिया की उन्नत किस्मों में सी- 152, पूसा फाल्गुनी, अम्बा (वी- 16), स्वर्णा (वी- 38), जी सी- 3, पूसा सम्पदा (वी- 585) और श्रेष्ठा (वी- 37) आदि प्रमुख है।
  • चारे के लिए लोबिया की उन्नत किस्मों में जी एफ सी- 1, जी एफ सी- 2 और जी एफ सी- 3 आदि अच्छी किस्में हैं।
  • खरीफ और जायद दोनों मौसम में उगाये जाने वाले किस्मों में बंडल लोबिया- 1, यू पी सी- 287, यू पी सी- 5286 रशियन ग्रेन्ट, के- 395, आई जी एफ आर आई (कोहीनूर), सी- 8, यू पीसी- 5287, यू पी सी- 4200, यू पी सी- 628, यू पी सी- 628, यू पी सी- 621, यू पी सी- 622 और यू पी सी- 625 आदि हैं।
  • लोबिया की बुवाई के लिए 12-20 कि.ग्रा. बीज/हेक्टेयर उपयुक्त होता है। जबकि बेलदार लोबिया की बीज कम मात्रा में ली जा सकती है।

ये भी पढ़ें: संतुलित आहार के लिए पूसा संस्थान की उन्नत किस्में

लोबिया बुवाई के समय ध्यान रखना चाहिए कि इनके बीच की दूरी सही हो:

  • लोबिया की झाड़ीदार किस्मों के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45-60 सेमी. तथा बीज से बीज की दूरी 10 सेमी. रखनी चाहिए।
  • बेलदार लोबिया के पंक्ति से पंक्ति की दूरी 80-90 सेमी. रखना सही होता है।

लोबिया की खेती में खाद, खर पतवार नियंत्रण व सिंचाई:

  • बुवाई के पूर्व लोबिया के बीज का राजजोबियम नामक जीवाणु से उपचार जरूरी होता है।
  • खेत में गोबर या कम्पोस्ट की 20 टन मात्रा बुवाई से एक माह पहले डालनी चाहिए। नत्रजन 20 किग्रा, फास्फोरस 60 कि.ग्रा. तथा पोटाश 50 कि.ग्रा. की मात्र प्रति हेक्टेयर की दर से जुलाई के अंत में मिट्टी में मिलानी चाहिए।
  • फसल में फूल आने के समय नत्रजन की 20 कि.ग्रा. की मात्रा फसल में देनी चाहिए।
  • लोबिया के पौधों की दो-तीन निराई व गुड़ाई करनी चाहिए ताकि खर पतवार पर नियंत्रण रह सके।
  • गर्मी में इसकी फसल को पर 5 से 6 सिंचाई की जरूरत होती है। इसकी सिंचाई 10 से 15 दिनों के अंतर पर करनी चाहिए।

लोबिया की तुड़ाई/कटाई कब करें ?

  • लोबिया के हरी फलियों की तुडाई बुवाई के 45 से 90 दिन बाद किस्म के आधार पर करनी चाहिये।
  • चारे के लिये फसल की कटाई बुवाई के 40 से 45 दिन बाद की जाती है।
  • दाने की फसल के लिए कटाई, बुवाई फलियों के पुरे पक जाने पर 90 से 125 दिन बाद करनी चाहिए।
  • लोबिया की नर्म व कच्ची फलियों की तुड़ाई 4-5 दिन के अंतराल पर की जा सकती है।
  • झाड़ीदार प्रजातियों में 3-4 तुड़ाई तथा बेलदार प्रजातियों में 8-10 तुड़ाई की जा सकती है।

लोबिया की फसल से दाना व चारा की प्राप्ति :

  • लोबिया की एक हेक्टेयर की फसल से करीब 12 से 17 क्विंटल दाना व 50 से 60 क्विंटल भूसा प्राप्त किया जा सकता है।
  • जबकि 250 से 400 क्विंटल तक हरा चारा प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त किया जा सकता है।

लोबिया - Cowpea (Lobia/Karamani) Mandi Bhav मंडी भाव :

30 जून 2022 को मुंबई मंडी में लोबिया मूल्य 7128 रुपए प्रति क्विंटल था।

गर्मियों के मौसम में करें लोबिया की खेती, जल्द हो जाएंगे मालामाल

गर्मियों के मौसम में करें लोबिया की खेती, जल्द हो जाएंगे मालामाल

लोबिया एक महत्वपूर्ण फसल है, जिसे बोड़ा के नाम से भी जाना जाता है। यह एक दलहनी पौधा है जिसकी खेती मैदानी इलाकों में मार्च से अक्टूबर के मध्य की जाती है। इसके पौधे में पतली, लम्बी  फलियां होती हैं। जिनको कच्ची अवस्था में तोड़ लिया जाता है और उनका उपयोग सब्जी बनाने में किया जाता है। यह अफ्रीकी मूल की फसल है, जिसे साल भर भारत के हर राज्य में उगाया जाता है। लोबिया की फलियों को भारत में बोड़ा चौला या चौरा की फलियों के नाम से जाना जाता है। खेत में इस फसल को उगाने के कारण खेत की मिट्टी में नमी मौजूद रहती है। इसके साथ ही यह विषम परिस्थियों में उगने वाली फसल है जो सूखे को सहन करने की क्षमता रखती है। इस फसल के कारण खेत में खरपतवार पैदा नहीं हो पाते। इसकी खेती ज्यादातर पंजाब के मैदानी इलाकों में की जाती है। आजकल बाजार में इसकी जबरदस्त डिमांड है, ऐसे में किसान भाई लोबिया की खेती करके अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते हैं।

लोबिया की खेती के लिए जलवायु

समशीतोष्ण जलवायु लोबिया की खेती के लिए सबसे उत्तम मानी गई है। गर्मी के मौसम में इसके पौधे तेजी से विकास करते हैं, लेकिन जरूरत से ज्यादा गर्मी इन पौधों के लिए नुकसानदेह भी हो सकती है। लोबिया की खेती के लिए सर्दियों का मौसम अनुकूल नहीं है। इस मौसम में पौधे ज्यादा विकास नहीं कर पाते हैं। साथ ही ज्यादा बरसात भी लोबिया की खेती को बुरी तरह से प्रभावित करती है। शुरूआत में लोबिया के बीजों को अंकुरित होने के लिए 20 डिग्री के आसपास तापमान की जरूरत होती है। इसके बाद 35 डिग्री तक के तापमान पर लोबिया के पौधे आसानी से विकसित हो जाते हैं। इसलिए हम कह सकते हैं कि इस फसल के विकास के लिए शुष्क जलवायु सबसे उत्तम होती है।

इस मौसम में की जाती है लोबिया की खेती

लोबिया की खेती मुख्यतः गर्मियों के मौसम में की जाती है। इसके अलावा इसकी खेती बरसात के मौसम में भी की जाती है। गर्मियों के मौसम के लिए इसकी बुवाई मार्च और अप्रैल माह में की जाती है। जबकि बरसात के मौसम के लिए इसकी बुवाई जून-जुलाई माह में की जाती है। लोबिया के पौधे लता और झाड़ीदार दोनों रूप में पाए जाते हैं।

ये भी पढ़ें:
लोबिया की खेती से किसानों को होगा दोहरा लाभ

लोबिया की फसल एक लिए ये मिट्टी होती है सबसे उपयुक्त

वैसे तो लोबिया की फसल हर प्रकार की मिट्टी में बेहद आसानी से उगाई जा सकती है, लेकिन इसके लिए मटियार या रेतीली दोमट मिट्टी को सबसे अच्छा माना गया है। देश के कई राज्यों में इस फसल को लाल, काली और लैटराइटी मिट्टी में भी उगाया जाता है। लोबिया की फसल के लिए मिट्टी का परीक्षण अवश्य करवाना चाहिए। कार्बनिक पदार्थो से युक्त उपजाऊ मिट्टी इस फसल के लिए उपयुक्त मानी जाती है। ध्यान रखें कि खेत में जल निकासी का उचित प्रबंध हो। लोबिया की खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 6 से 8 बीच होना चाहिए। इसकी खेती अधिक लवणीय और क्षारीय मृदा में नहीं करनी चाहिए। ऐसी मृदा में इसकी खेती करने पर अपेक्षाकृत परिणाम प्राप्त नहीं होते।

लोबिया की उन्नत किस्में

वैसे तो बाजर में लोबिया की बहुत सारी किस्में उपलब्ध हैं। लेकिन हम आपको ऐसी किस्मों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनकी मदद से कम समय में ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है। पंत लोबिया : लोबिया की इस किस्म के पौधे डेढ़ फीट ऊंचे होते हैं। इस किस्म की खेती अगेती फसल के रूप में की जाती है। यह फसल बुवाई के मात्र 60 दिन बाद तैयार हो जाती है। इसमें आधा फीट लंबी फलियां होती हैं, जिसके दाने सफेद होते हैं। लोबिया की इस किस्म की बुवाई करने पर एक हेक्टेयर में 15 से 20 क्विंटल लोबिया का उत्पादन किया जा सकता है। लोबिया 263 : यह ऐसी किस्म है जिसे खरीफ के साथ साथ रबी में भी उगाया जा सकता है। इसकी फसल तेजी से तैयार होती है। बुवाई के मात्र 45 दिनों के बाद यह तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इस किस्म में रोग का प्रकोप भी कम होता है। लोबिया 263 किस्म का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 125 किवंटल तक होता है। पूसा कोमल : इस किस्म की बुवाई बसंत, गर्मी और बरसात में की जाती है। इसकी फलियां 20 सेंटीमीटर लंबी होती हैं। साथ ही फलियों का रंग हल्का हरा होता है। इस किस्म की पैदावार 100 से 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है। पूसा बरसाती : लोबिया की इस किस्म की बुवाई बरसात के मौसम में की जाती है। इसकी फलियों की लंबाई 22 से 26 सेंटीमीटर तक होती है और फलियों का रंग हल्का होता है। यह फसल बुवाई के 40 दिनों बाद तैयार हो जाती है। इस किस्म की बुवाई करके किसान भाई 80 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर का उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। अर्का गरिमा : लोबिया की इस किस्म की बुवाई बरसात के मौसम में की जाती है। इसके पौधों की ऊंचाई 6 से 8 फीट तक होती है। यह फसल रोपाई के 40 से 45 दिन बाद तक तैयार हो जाती है। इस किस्म की खेती में एक हेक्टेयर में 80 क्विंटल तक का उत्पादन हो सकता है। पूसा ऋतुराज : लोबिया की यह किस्म ज्यादा तापमान सहन नहीं कर पाती। इसकी फलियां 20 से 25 सेंटीमीटर लंबी होती हैं। साथ ही इसका उत्पादन एक हेक्टेयर में 80 क्विंटल तक हो सकता है।

लोबिया की बुवाई

गर्मियों के मौसम में लोबिया की बुवाई समतल भूमि में की जा सकती है, जबकि बरसात के मौसम में 15 सेंटीमीटर ऊंचे मिट्टी के बेड पर बुवाई करनी चाहिए। लोबिया की बुवाई के लिए एक हेक्टेयर में लगभग 30 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है। बुवाई के पहले बीजों को उपचारित कर लेना चाहिए। ऐसा करने पर 95 प्रतिशत बीजों का अंकुरण अच्छे से होता है। साथ ही फसल में रोग लगने की संभावना न के बराबर होती है। लोबिया के बीजों को उपचारित करने के लिए थीरम दवा का प्रयोग कर सकते हैं। लोबिया की बुवाई पक्तियों में करनी चाहिए।

खाद एवं उर्वरक की मात्रा

लोबिया के लिए खेत तैयार करने के पहले ही खेत में 10-15 टन तक गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से डालना चाहिए। इसके अलावा खेत में 30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से डाल सकते हैं। साथ ही अगर किसान भाई जिंक सल्फेट का प्रयोग करते हैं तो उनकी लोबिया की फसल ज्यादा तेजी से बढ़ेगी।

रोग नियंत्रण एवं कीट प्रबंधन

लोबिया की फसल में बीज गलन की बीमारी सबसे ज्यादा देखी जाती है। इस बीमारी की वजह से बीज सिकुड़ जाते हैं और बेरंग हो जाते हैं। कई बार देखा गया है कि बीजों का अंकुरण होने के पहले ही वो नष्ट हो जाते हैं। इससे निपटने के लिए बुवाई से पहले 'थीरम दवा' या 'बवास्टिन 50 डब्ल्यू पी' से बीजों को उपचारित करें। इसके अलावा जीवाणु झुलसा रोग भी लोबिया की खेती में देखा जाता है। यह रोग ज्यादातर नवजात पौधों में देखने को मिलता है। इसके रोकथाम के लिए 'ब्लाईटाक्स' का छिडक़ाव कर सकते हैं। एक अन्य रोग इस फसल में देखा जाता है, जिसे लोबिया मोजैक के नाम से जानते हैं। यह सफेद मक्खी द्वारा फैलती है। इस बीमारी से सबसे ज्यादा पौधे की पत्तियां प्रभावित होती हैं। इस बीमारी की रोकथाम के लिए 'मेटासिस्टॉक्स' या 'डाइमेथोएट' का छिडक़ाव करना चाहिए।

ये भी पढ़ें:
जैविक पध्दति द्वारा जैविक कीट नियंत्रण के नुस्खों को अपना कर आप अपनी कृषि लागत को कम कर सकते है अगर लोबिया की फसल में कीटों की बात करें तो सबसे ज्यादा प्रकोप रोमिल सूंडी का देखा जाता है। यह कीट इस फसल को भारी नुकसान पहुंचाता है। इस कीट के नियंत्रण के लिए फसल में 'मिथाइल पेराथियानद' का छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा तेला और काला चेपा कीटों का भी लोबिया की फसल पर जबरदस्त हमला होता है। इसके प्रबंधन के लिए 'मैलाथियॉन 50 ई सी' का पानी में घोलकर छिड़काव किया जा सकता है। लोबिया की फसल में लीफ होपर, जैसिड और एफिड कीटों की भी भारी मात्रा में आक्रमण होता है। ये कीट पौधों का रस चूसते हैं, जिससे पौधे कमजोर हो जाते हैं। इनके नियंत्रण के लिए 'डाईमेथोएट 30 ईसी' या 'मिथाइल डिमेटान 30 ईसी'  का छिड़काव किया जा सकता है।

इतने दिनों में तैयार हो जाती है लोबिया की फसल

यह मैदानी इलाकों में उगाई जाने वाले गर्म एवं आर्द्र जलवायु वाली फसल है। इस फसल को तैयार होने में ज्यादा समय नहीं लगता। भारत के सभी राज्यों में यह फसल 40 से 45 दिन के अंतराल में तैयार हो जाती है।

लोबिया में इन पोषक तत्वों की होती है मौजूदगी

लोबिया पोषक तत्वों से भरपूर होती है। इसमें मुख्य तौर पर प्रोटीन, वसा, कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन, कैरोटीन, थायमीन, राइबोफ्लेविन, नियासीन, फाइबर, एंटीऑक्सीडेन्ट, विटामिन बी 2 और विटामिन सी जैसे पोषक तत्वों की भरमार होती है। इस खाने से शरीर को अतिरिक्त पोषण मिलता है। साथ ही वजन कम करने में, पाचन, दिल को स्वस्थ रखने में और शरीर को डिटॉक्स करने में सहायता मिलती है। भारत के किसान हरी खाद, पशुओं के चारे एवं सब्जी के लिए लोबिया की खेती करते है। इस खेती से किसानों की पशु चारे की समस्या भी हल हो जाती है। साथ ही बाजार में सब्जी बेंचकर किसान बेहद कम समय में अच्छी खासी आमदनी प्राप्त कर सकते हैं।
लोबिया की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

लोबिया की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

खरीफ फसलों की बुवाई का समय चल रहा है। अब ऐसी स्थिति में लोबिया की खेती छोटे किसानों के लिए एक वरदान साबित हो सकती है। यदि आप भी कम भूमि पर खेती-किसानी करते हैं, क्योंकि आज के इस लेख में हम आपको लोबिया की खेती के बारे में बताएंगे। भारत में छोटे और लघु किसानों की तादात काफी ज्यादा है, जिनके पास काफी कम भूमि है। ऐसे कृषकों के लिए लोबिया की खेती काफी फायदेमंद साबित हो सकती है। लोबिया एक दलहनी फसल की श्रेणी में आने वाली एक फसल है। इसकी खेती खरीफ एवं जायद, दोनों सीजनों में की जाती है। इसकी खेती करने से कृषकों को दो तरह के लाभ हो सकते हैं। एक तो किसान इसे सब्जी के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं एवं दूसरा इसको पशुओं के चारे में उपयोग किया जा सकता है। लोबिया एक ऐसी फली होती है, जो कि तिलहन की श्रेणी के अंतर्गत आती है। इसे बोड़ा, चौला या चौरा के नाम से भी जाना जाता है। बतादें कि इसका पौधा सफेद रंग का काफी बड़ा होता है। लोबिया की फलियां पतली, लंबी होती हैं। इसे सब्जी बनाने के लिए या फिर पशुओं के चारे के लिए उपयोग किया जाता है।

लोबिया की खेती करने के लिए निम्नलिखित चीजों का ध्यान रखा जाना बहुत जरुरी है

लोबिया की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु एवं मृदा

लोबिया की खेती करने के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु की जरूरत होती है। बतादें, कि इसकी खेती करने लिए 24-27 डिग्री के मध्य के तापमान की आवश्यकता होती है। अत्यधिक कम तापमान होने के स्थिति में इसकी फसल चौपट हो सकती है। इस वजह से लोबिया की फसल को ज्यादा ठंड से बचाना चाहिए।

ये भी पढ़ें:
गर्मियों के मौसम में करें लोबिया की खेती, जल्द हो जाएंगे मालामाल लोबिया की खेती करने के लिए यदि मृदा की बात की जाए, तो इसे हर तरह की मिट्टी में उत्पादित किया जा सकता है। मगर एक बात का विशेष ख्याल रखें, कि इसके लिए छारीय मृदा बिल्कुल ठीक नहीं होती।

लोबिया की उन्नत प्रजतियाँ

दरअसल, लोबिया की विभिन्न उन्नत किस्में हैं, जो कि काफी अच्छी पैदावार देती हैं। जैसे कि - सी- 152, पूसा फाल्गुनी, अम्बा (वी- 16), स्वर्णा (वी- 38), जी सी- 3, पूसा सम्पदा (वी- 585) और श्रेष्ठा (वी- 37) आदि प्रमुख हैं।

लोबिया की बुवाई कब की जाती है

लोबिया की बुवाई के बारे में बात की जाए, तो बरसात के मौसम में जून माह के अंत व जुलाई की शुरुआत में इसकी बुवाई की जाती है। वहीं, इसे फरवरी से लेकर मार्च तक बोया जाता है।

ये भी पढ़ें:
किसान भाई ध्यान दें, खरीफ की फसलों की बुवाई के लिए नई एडवाइजरी जारी

लोबिया की बुवाई हेतु बीज की मात्रा

लोबिया की बुवाई करने के दौरान बीज की मात्रा ज्यादा ना हो इस बात का विशेष ध्यान रखने की जरूरत है। इसकी बुवाई हेतु सामान्यत: 12-20 कि.ग्रा. बीज/हेक्टेयर की दर से पर्याप्त होता है। इसकी बेल वाली किस्म के लिए बीज की मात्रा थोड़ी कम लगती है और मौसम के अनुरूप बीज की मात्रा का निर्धारण करना ज्यादा उचित होता है।

इस तरह करें लोबिया की बुवाई

लोबिया की बुवाई करते समय आपको यह ध्यान देने की जरूरत है, कि इसके बीज के मध्य का फासला सही होना चाहिए। जिससे कि जब इसका पौधा उगे, तो ठीक ढ़ंग से विकास कर सके। दरअसल, लोबिया की बुवाई के दौरान उसकी किस्म के मुताबिक दूरी तय की जाती है। जैसे कि - झाड़ीदार किस्मों के बीज के लिए एक लाइन से दूसरी लाइन का फासला 45-60 सेमी होना चाहिए। बीज से बीज का फासला 10 सेमी होना चाहिए। साथ ही, इसकी बेलदार प्रजातियों के लिए लाइन से लाइन का फासला 80-90 सेमी रखना सही होता है।

लोबिया की खेती में खाद कितनी मात्रा में देना चाहिए

जैसा कि हम जानते हैं, कि किसी भी फसल की खेती करने के लिए खाद की काफी आवश्यक होती है। इसी प्रकार लोबिया की खेती करने के लिए खाद आवश्यक है। लोबिया की फसल में इस प्रकार से खाद डालें। एक महीने पहले खेत में 20-25 टन गोबर अथवा कम्पोस्ट डालें, 20 किग्रा नाइट्रोजन, फास्फोरस 60 कि.ग्रा. और पोटाश 50 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर के अनुरूप खेत में जुलाई के अंत में ही डाल दें। साथ ही, नाइट्रोजन की 20 कि.ग्रा. की मात्रा फसल में फूल आने के समय देनी चाहिए।

ये भी पढ़ें:
लोबिया की खेती: किसानों के साथ साथ दुधारू पशुओं के लिए भी वरदान

लोबिया की सिंचाई

लोबिया की फसल को खरीफ के सीजन में पानी की ज्यादा आवश्यकता नहीं पड़ती है। इस वजह से खरीफ के सीजन में उतना ही पानी देना चाहिए, जिससे कि मृदा में नमी बनी रहे। साथ ही, अगर हम गर्मी की फसल की बात करें, तो सामान्यतः किसी भी फसल में पानी की अधिक आवश्यकता होती है। लोबिया की फसल में 5 से 6 पानी की आवश्यकता होती है।

लोबिया की कटाई कब की जाती है

लोबिया की हरी फलियों का अगर आप इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो इसकी फलियों को 45 से 90 दिन बाद तोड़ लेना चाहिए। यदि आपने लोबिया की चारे वाली फलियों की फसल की है, तो इसकी फलियों को सामान्य रूप से 40 से 45 दिन में तोड़ लेना चाहिए। साथ ही, यदि आप इसके दाने को अर्जित करना चाहते हैं, तो उसके लिए आपको 90 से 125 दिन के पश्चात ही फलियों को संपूर्ण तौर पर पकने की स्थिति में ही तोड़ना चाहिए।